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    09.03.2025 : दीक्षांत अभिभाषण: कंचनजंघा राज्य विश्वविद्यालय

    Publish Date: March 9, 2025

    दीक्षांत अभिभाषण: कंचनजंघा राज्य विश्वविद्यालय
    09 मार्च, 2025
    कंचनजंगा राज्य विश्वविद्यालय सिक्किम के तीसरे दीक्षांत समारोह का हिस्सा बनना मेरे लिए अत्यंत खुशी की बात है। विशेष रूप से, आज इस विश्वविद्यालय में स्नातक उपाधि प्राप्त करने वाले छात्रों और उनके गौरवान्वित अभिभावकों के बीच उपस्थित होकर मैं अति प्रसन्नता का अनुभव कर रहा हूँ। आज का दिन इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि हम उन छात्रों को सम्मानित करने के लिए एकजुट हुए हैं जो शिक्षा के माध्यम से समाज, राज्य और हमारे देश का भविष्य निर्माण में अपना महत्वपूर्ण योगदान देंगे। यह एक ऐसा क्षण है, जिसमें नए युग के निर्माण के बीज अंकुरित हुए हैं।
    जैसा कि मुझे ज्ञात हुआ है, कंचनजंगा राज्य विश्वविद्यालय, सिक्किम का स्थायी परिसर दक्षिण सिक्किम के तारकू में निर्माणाधीन है और स्थायी परिसर के अभाव में कई अनुकूल सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं।

    इसके बावजूद, मुझे प्रसन्नता है कि यह विश्वविद्यालय युवा पीढ़ी में प्रबोधन व ज्ञान की ज्योति फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। इस दिशा में, मैं चाहता हूं कि परिसर का निर्माण कार्य जल्द ही पूरा हो और नई शिक्षा नीति को ध्यान में रखते हुए कई कार्यक्रमों में अध्ययन और अनुसंधान गतिविधियों की सुविधा हमारे युवाओं को जल्द से जल्द उपलब्ध हो।
    आज निस्संदेह, इस छोटे पर्वतीय राज्य सिक्किम में यह विश्वविद्यालय भाषा के क्षेत्र में विकास को गति प्रदान करते हुए उच्च शिक्षा की सार्थक भूमिका निभा रहा है। सिक्किम में विश्ववि‌द्यालय और उच्च शिक्षा की स्थापना यात्रा 1995 में शुरू हुई । केंद्रीय विश्ववि‌द्यालयों से लेकर राज्य विश्ववि‌द्यालयों और राज्य निजी विश्ववि‌द्यालयों तक, चिकित्सा विज्ञान, मानव विज्ञान, भूगोल, समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र, भाषा और साहित्य आदि से लेकर डॉक्टरेट स्तर तक की पढ़ाई कराई जा रही है। यह जानकार प्रसन्नता हुई कि भाषा के संरक्षण और संवर्धन की दिशा में कंचनजंगा स्टेट यूनिवर्सिटी अपना योगदान प्रदान कर रहा है।
    जैसा कि कवि भारतेन्दु हरिश्चंद्र जी ने कहा है:
    “निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
    बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।”

    मुझे बहुत खुशी है कि कंचनजंगा विश्वविद्यालय में पाँच प्रमुख भाषाओं – संस्कृत, नेपाली, लेप्चा, भूटिया और लिम्बू में एम.ए. कार्यक्रम संचालित किए जा रहे हैं, जो भारत की भाषाई विविधता को प्रदर्शित करते हैं और राष्ट्रीय संस्कृति को समृद्ध करते हैं। अपनी मातृभाषा के माध्यम से हम न केवल ज्ञान को बेहतर तरीके से समझ सकते हैं, बल्कि अपनी संस्कृति, परंपराएं और जड़ें भी बनाए रख सकते हैं। भाषा केवल संवाद का माध्यम नहीं होती, बल्कि वह एक पूरी संस्कृति, परंपराएं, ज्ञान और जीवन के अनुभवों का वाहक होती है। जब कोई भाषा विलुप्त हो जाती है, तो उसके साथ उस समुदाय का इतिहास और उनकी पहचान का एक अहम हिस्सा भी खो जाता है।

    इसलिए भाषाओं को संरक्षित करना और उनका सम्मान करना न केवल भाषा के लिए, बल्कि मानवता की विविधता को बनाए रखने के लिए भी अत्यंत आवश्यक है।
    माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी की दूरदर्शिता के फलस्वरूप राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 की अनूठी नींव रखी गई है। यह नए भारत की, नई उम्मीदों की, नई आवश्यकताओं की पूर्ति का सशक्त माध्यम है जिसमें मातृभाषा में शिक्षा को प्राथमिकता देने की वकालत की गई है। इसके माध्यम से क्षेत्रीय भाषाओं के संरक्षण और उनके विकास को भी बढ़ावा दिया जा रहा है। मुझे लगता है कि एक सशक्त शिक्षा नीति का आधार, भाषा को उसका उचित स्थान देना ही है, और यही हमारे देश के उज्ज्वल भविष्य का पथ प्रशस्त करेगा।

    प्रिय विद्यार्थियों,
    आधुनिक शिक्षा में तकनीक व प्रौद्योगिकी का अहम स्थान होने वाला है ,इसलिए वर्तमान शिक्षा में इसका भी समावेश आवश्यक है और आप इस शक्ति के वास्तविक अधिनायक हैं। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में ‘स्टार्ट अप इंडिया’, ‘स्टैंड अप इंडिया, ‘मेक इन इंडिया’ और ‘डिजिटल इंडिया’ जैसी योजनाओं का लाभ उठाते हुए सक्षम और सामर्थ्य बने | नवाचार और अनुसंधान के क्षेत्र में नई ऊँचाइयों को छूने का प्रयास करें। इसके साथ ही हमारे महान विद्वानों जैसे आर्यभट्ट, चरक, सुश्रुत और भास्कराचार्य द्वारा दिए गए योगदानों को समझें और उनसे प्रेरणा लें। हमारे देश में तक्षशिला, नालंदा, विक्रमशिला जैसे विश्व प्रसिद्ध शिक्षा संस्थान रहे हैं, जिन्होंने अपने समय में ज्ञान के प्रसार के उच्चतम मानक स्थापित किए। 21वीं सदी, ज्ञान की सदी है, और आज के समाज में ज्ञान का महत्व संपत्ति से कहीं अधिक हो गया है।

    प्रिय छात्रों,
    दीक्षांत समारोह हमेशा एक विशेष अवसर होता है, जहां हम वर्षों की कड़ी मेहनत और समर्पण के माध्यम से लक्ष्यों की प्राप्ति और सफलता को देखते हैं। इस शुभ दिन पर पदक विजेताओं और डिग्री प्राप्तकर्ताओं को उनकी उपलब्धि के लिए बधाई देता हूँ। साथ ही, बधाई देता हूँ उनके अभिभावकों, माता-पिता एवं विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. आशीष शर्मा एवं सम्पूर्ण संकाय को जिन्होंने अपनी मेहनत, सही दिशा और समर्पण से उन्हें इस मुकाम तक पहुंचाया है।

    प्यारे बच्चों,
    इस अवसर पर मैं महात्मा गांधी जी के उस वाक्य को आप युवाओं के बीच उद्धृत करना चाहूँगा कि
    “शिक्षा का उद्देश्य मनुष्य का सर्वांगीण विकास करना है। यह केवल पढ़ना-लिखना सिखाने तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका उद्देश्य ऐसा विकसित मनुष्य बनाना है जो आत्मनिर्भर, आत्मविश्वासी और समाज में सहयोग करने वाला हो।“
    आपकी स्नातक की उपाधि केवल एक प्रमाण पत्र नहीं है, यह आपके ज्ञान, प्रतिबद्धता और मेहनत का प्रतीक है । इस डिग्री का उपयोग केवल अपने लिए ही नहीं, बल्कि समाज के उत्थान और राष्ट्र की प्रगति के लिए करें। अपने ज्ञान और कौशल से उन लोगों को सशक्त करें जिन्हें इसकी सबसे अधिक आवश्यकता है । सेवा, सहानुभूति और समर्पण की भावना से अपने प्रयासों को एक ऐसा माध्यम बनाएं जो समाज के कमज़ोर वर्गों को एक बेहतर जीवन का सपना साकार करने में मदद करे। आपसे राष्ट्र को उम्मीद है कि आप अपने विचारों, कार्यों और संकल्पों से इसे नए शिखर तक ले जाएंगे।
    प्रिय विद्यार्थियों,
    आप सभी आज अपने जीवन की एक नई दहलीज पर खड़े हैं। यह आपके लिए एक निर्णायक पल है। इस गरिमामयी समारोह में विश्वविद्यालय से स्नातक उपाधि प्राप्त करने वाले सभी विद्यार्थियों को मेरी बहुत-बहुत शुभकामनाएँ। मैं आप सभी के उज्ज्वल भविष्य की कामना करता हूँ।
    इस अवसर पर मैं भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम जी के वक्तव्य से अपनी वाणी को विश्राम देना चाहूँगा:
    “सपने वो नहीं जो हम सोते वक्त देखते हैं, सपने वो हैं जो हमें सोने नहीं देते।”
    स्वयं पर विश्वास रखें और बढ़ते रहें। मंज़िल निश्चित प्राप्त करेंगे। अंत में पुनः एक बार फिर आप सभी को शुभकामनाएँ देता हूँ और ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि आप सभी को व्यक्तिगत व समग्र मानवीय कल्याण हेतु अपेक्षित शक्ति, साहस तथा विवेक प्रदान करें। इसी के साथ, हमें यह भी ध्यान देने की आवश्यकता है कि समानुभूति और सकारात्मक सोच भी समान रूप से परम आवश्यक हैं। आप इस परिवर्तन के मशालवाहक बनें, तकनीकी को विकास और समावेशिता के एक उपकरण के रूप में प्रयोग में लाएँ, और सदैव स्मरण रखें कि ज्ञान का अनुसरण-पथ एक आजीवन यात्रा है- एक ऐसी यात्रा जो परंपरा और नवाचार से समृद्ध है।

    जय भारत!
    जय सिक्किम!